परिवार
इस बेचैन भरी भाग दौड़ में,
एक पल ज़िन्दगी के वो भी थे ,
जब रिश्तों का मतलब दिखता था परिवार में,
और खुश रहते थे हम जैसे भी थे
लींन हो चुके हम दिखावे के दौर में ,
मनोरंजन के कई साधन हमारे पास हैं ,
ये साधन तो निर्जीव हैं,
या इन्ही से मिलती लोगों को आजकल साँस है
बड़ों की किस्से-कहानियां सुना करते थे ,
तब संस्कार और संस्कृति रग-रग में बसते थे,
क्या सुनहरा वक़्त था वो ज़िन्दगी का ,
जब उस दौर में हम मुस्कुराते नहीं खुलकर हँसते थे
बेबुनियाद है ये भाग दौड़ ज़िन्दगी की ,
सुख जो परिवार में है वो मिलेगा कहाँ,
*कुछ पल बचा लो अपनों के लिए ,
जो पलट के देखोगे ये मिलेंगे कहाँ *
खुशनसीब हैं वो आज भी ,
जो साथ पंगत में बैठ निवाला तोड़ते हैं ,
भोजन तो बस एक बहाना है उनके लिए ,
पर वो आज भी अपनों की संगत में रिश्ते जोड़ते हैं.
- Harshvardhan Sharma
*मुनिश्री क्षमासागर
Okay...this one was a real class from you bruh...keep going you are doing this really well
ReplyDeleteThanks brother
DeleteReally awesome, good work. Keep it
ReplyDeleteThank you
Delete👌👌
ReplyDelete😊
Delete👌✌️
ReplyDelete😇😊
Deleteबहुत सुंदर , साधुवाद
ReplyDeleteDhanyvaad aapka
DeleteBeautifully written 👏
ReplyDeleteThank you
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