Sunday, 22 September 2019

परिवार

परिवार


इस बेचैन भरी भाग दौड़ में, 
एक पल ज़िन्दगी के वो भी थे , 
जब रिश्तों का मतलब दिखता था परिवार में, 
और खुश रहते थे हम जैसे भी थे 




लींन हो चुके हम दिखावे के दौर में ,
 मनोरंजन के कई साधन हमारे पास हैं ,
ये साधन तो निर्जीव हैं,
 या इन्ही से मिलती लोगों को आजकल साँस है


बड़ों की किस्से-कहानियां सुना करते थे , 
 तब संस्कार और संस्कृति रग-रग में बसते थे, 
क्या सुनहरा वक़्त था वो ज़िन्दगी का , 
जब उस दौर में हम मुस्कुराते नहीं खुलकर हँसते थे 


बेबुनियाद है ये भाग दौड़ ज़िन्दगी की , 
सुख जो परिवार में है वो मिलेगा कहाँ,
 *कुछ पल बचा लो अपनों के लिए ,
 जो पलट के देखोगे ये मिलेंगे कहाँ *


खुशनसीब हैं वो आज भी , 
 जो साथ पंगत में बैठ निवाला तोड़ते हैं , 
 भोजन तो बस एक बहाना है उनके लिए ,  
 पर वो आज भी अपनों की संगत में रिश्ते जोड़ते हैं. 


- Harshvardhan Sharma 




*मुनिश्री क्षमासागर

12 comments:

मजबूर : मजदूर ( A fight of Corona migrants )

मजबूर : मजदूर छोड़ के गावं के घर  जिस तरह शहर आये थे हम  आज कुछ उसी तरह  वैसे ही वापिस जा रहे हैं हम  बस फर्क इतना है ...