Wednesday 12 July 2017

Hope: उम्मीद

उम्मीद

                                          -Harsh Sharma

चल पड़े उस राह पर,
जहाँ डगमग हो चले है रास्ते,
पड़ गयी नज़र किसी उजाले पर,
जैसे जीना हो उसी के वास्ते

सिमटी सिमटी सी है मुस्कराहटें,
सिसकियाँ चरम पर हैं,
उम्मीद की लौ लिए,
फिर भी चल पड़े  खुदा के वास्ते

एक रौशनी सी आयी,
जो कुछ नया दिखा गयी,
डूबते हुए को वो ,
तैरना सिखा गयी

मंजिल ढूढने चले थे ,
अंधकार में सीना ताने,
वही उम्मीद एक पल ,
कहीं से सवेरा  ढूढ लाई

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