रंग दूध का लाल हो गया ,
पंछियों में भी बैर हो गया ,
बैठे थे चार - यार चबूतरे के बीच,
उनके भेद में भी अभेद हो गया
हवाओं में महक रहा बारूद यहाँ ,
खेतों में गन्दी नसल पनप रही ,
बैठे नदी किनारे ये सब दिख रहा यहाँ ,
देखो !!! खुद नदी आज लाल रंग में बह रही
अपनों से ही द्वंद्व छिड़ा है ,
नफरतों का ये कैसा छन्द भिड़ा है,
धर्मो का कोई दोष नहीं ,
ये इंसानियत में गन्दा मुद्दा खड़ा है
शहीद की गिनती में देश को बाट रहे ,
अपने वतन को छोड़ पराये मुल्क में अपनापन छांट रहे ,
किसी को इस मिटटी से दिक्कत है ,
वो सब इस मिटटी से आज अपनापन झाड़ रहे
सुनने की क्षमता बची नही ,
सब सुपर्द - ए - खाक हो गयी
इंसानियत धर्म का गला घोट रही
..एकता की कहानियां सब राख हो गयी .
👏👏👏
ReplyDeleteGood
DeleteThanks 😊
Delete👏👍
ReplyDeleteThank you 😊
Delete💓👌
ReplyDelete👍great job
ReplyDeleteThank you 😊
DeleteSo nice..
ReplyDeleteThank you 😊
Delete👍
ReplyDeleteNice. .. ��
ReplyDeleteThank you 😊
DeleteGood job .. reflection of current scenario
ReplyDeleteYup 😌 ...thank you 😊
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