Friday 4 January 2019

ये राजनीती है प्रिये!!

ये राजनीती है प्रिये!!




ये कैसा रचा है ढ़ोंग प्रिये,
ये कौन गा रहा है राष्ट्रगीत अब भांग पिए,
 मुद्दा कोई मिला नहीं,
 फिर छेड़ दिया ये धर्म का तार प्रिये, 

मैं रामचंद्र का इन्तजार करती
 सबरी की बेर हूँ
तुम अयोध्या में पनपने वाली 
साँपों की बेल हो

तुम गाल झाड़ू वाले की ,
 मैं थप्पड़ वाला लाली हूँ, 
तुम नारी शक्ति का नारा लगाने वाले , 
मैं वो सोच तुम्हारी काली हूँ

तुम राजनीती की अम्मा ,
 मैं झोल - झाल का अब्बा हूँ ,
 तुम अभिव्यक्ति की आज़ादी , 
मैं उसमे पड़ा एक धब्बा हूँ

तुम हर दंगों में बजने वाली
 एक चालाक ताली हो , 
मैं अच्छे काम पर भी पड़ने वाली
 एक गन्दी गाली हूँ

तुम केसर कश्मीर की , 
मैं तुमपे पड़ने वाला पत्थर हूँ, 
तुम आतंकियों के नकाब में आज़ादी मांगती , 
मैं जवान अडिग खड़ा सरहद पर पर्वत हूँ 

तुम हिंदी बोलने में शरमाती हो , 
मैं हिंदी का जन्मदाता हूँ , 
तुम हिंदुस्तान में रहने में डरती हो ,
 मैं फक्र से हिंदुस्तानी कहलवाता हूँ 

- "वर्धन"




14 comments:

मजबूर : मजदूर ( A fight of Corona migrants )

मजबूर : मजदूर छोड़ के गावं के घर  जिस तरह शहर आये थे हम  आज कुछ उसी तरह  वैसे ही वापिस जा रहे हैं हम  बस फर्क इतना है ...