कौन है मदारी यहाँ कौन है जमूरा
कुर्सी पर एक 'मौन' को बैठाया,
उसे समझ बैठा मैं बादशाह,
पर कुछ दिनों बाद दुःख हुआ ,
देख के उसकी दुर्दशा
सेवा का वादा करके,
वो खुद मेवा खा गया ,
राजा वो खुद बना ,
मुझे प्यादा बना गया
मत भडक मेरे दिल ,
यूँ खुद पे न गुर्रा,
तू ही था नासमझ ,
जो उसे दे दिया तुर्रा
जनता ही राजा प्रजा,
मदारी और जमूरा,
ये देश है स्वतंत्र,
ये मुल्क है कंगूरा
मुझको ही पूरा करना है ,
काम अधूरा,
अब कोई पी के ना झूमे ,
सत्ता का धतूरा
फिर से जब जंग छिड़ी,
सब को हो गया देश ये प्यारा,
अब कैसे पता चलेगा ,
कौन है मदारी यहाँ कौन है जमूरा
Excellent dear...
ReplyDeleteJisko bhi kursi mili usi ne iska tulf uthaya,
अब राजनीती खेल बन चुकी है
DeleteWah!!!!
ReplyDeleteThanks
DeleteGood one...keep it up
ReplyDeleteThanks 😊 keep supporting
DeleteGood one...keep it up
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