Sunday 29 July 2018

ये न जाने कैसा रहस्य है!!!

ये न जाने कैसा रहस्य है!!!



कुछ बातें हैं जो होंठों तक आई नहीं , 
बस जज्बातों से झांकती हैं
कभी तुमसे तो कभी मुझसे , 
वो बस आवाज़ मांगती हैं


अकसर मिलते नही हैं लफ्ज 
उसे बयां होने के लिए, 
यादों की बाहें ढूँढ़ते-ढूँढ़ते ...
वो कहीं गुम हो जाते हैं


जब ये तनहा दिल घबराया , 
मैंने इसे यूँ ही समझाया, 
ये जो गहरे सन्नाटे हैं , 
वक़्त ने सबको बांटते हैं ,
थोड़ा गम है सबका किस्सा  , 
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा


धीरे - धीरे वो बादल हटने लगे हैं, 
कोई जादू तो है इस वक़्त की घडी में , 
की एक बार फिर आवाज़ और लफ्ज़ मिलने लगे हैं

(जैसे कभी तुम और में ) 

ये न जाने कैसा रहस्य है!!!

-Harshvardhan Sharma

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