ये न जाने कैसा रहस्य है!!!
कुछ बातें हैं जो होंठों तक आई नहीं ,
बस जज्बातों से झांकती हैं
कभी तुमसे तो कभी मुझसे ,
वो बस आवाज़ मांगती हैं
अकसर मिलते नही हैं लफ्ज
उसे बयां होने के लिए,
यादों की बाहें ढूँढ़ते-ढूँढ़ते ...
वो कहीं गुम हो जाते हैं
जब ये तनहा दिल घबराया ,
मैंने इसे यूँ ही समझाया,
ये जो गहरे सन्नाटे हैं ,
वक़्त ने सबको बांटते हैं ,
थोड़ा गम है सबका किस्सा ,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
धीरे - धीरे वो बादल हटने लगे हैं,
कोई जादू तो है इस वक़्त की घडी में ,
की एक बार फिर आवाज़ और लफ्ज़ मिलने लगे हैं
(जैसे कभी तुम और में )
ये न जाने कैसा रहस्य है!!!
-Harshvardhan Sharma
Gjab mere bhai
ReplyDeleteGjab mere bhai
ReplyDeleteVery nice .
ReplyDeleteKeep it up .
ReplyDeleteWah bhai wah
ReplyDeleteBahut khoob... Keep writing bro..
ReplyDeleteGood one again.
ReplyDeleteKeep it up.
ReplyDeletenice
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