दहेज़
दहेज़ बेख़ौफ़ नाच रहा है,
एक पिता के मन में भर- भर कर,
वो राक्षस अभी मरा नहीं,
जो सोने नहीं देता उसे रात-रात भर
बेटी को उसने बड़े प्यार से पढ़ाया है,
अंदर ही अंदर एक सुन्दर सा सपना भी सजाया है
अब सोच के भी घबरा जाता है मन उसका
देख के उन 'दहेज मंडी' के खरीदारों को,
जिन्होंने हर बेटी की जिंदगी पर भाव लगाया है
अब...बेटी का ब्याह रचाना था,
पूरी ज़िन्दगी की कमाई का जोर था,
कोई कसर न रहे खातिरदारी में,
पर उसे क्या पता ये उसके मन का वहम था
बस एक सपना था उसका ,
मिल जाता कोई अच्छा सा वर ,
झट बेटी का ब्याह रचाता,
और सो जाता चैन से जिंदगी भर
-Harsh V. Sharma
वर्षों पुरानी प्रथा दहेज एक डर आज भी बैठा देती है कई परिवारों पर ये कविता भी उसी से मिलती जुलती है इसमें एक पिता के डर को बताया है जो उसे (पिता) रातों तक सोने नहीं देता उसे अपनी बेटी के लिए अच्छा वर ढूंढना है पर वो डरता है कहीं दहेज़ उसकी हैसियत से बाहर न निकल जाये बस यही सोचते सोचते वो अपनी बेटी के लिए सपने संजोता. है
अगर आपको कविता पसंद आये तो कृपया लाइक एवं शेयर करें और अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखें धन्यवाद
Nice......
ReplyDelete