Saturday, 20 January 2018

घर

घर 


घर की यादें भी बड़ी सुहानी है , 
यादें भी हर वक़्त  लिखती नयी कहानी हैं
घर से दूर रहना भी एक बड़ी लड़ाई है, 
मन ने हर पल यादों की एक कड़ी जो बनाई है


 घर अपनी दहलीज़ मे भर लेता है
 अब उस दहलीज़ मे पैर रखने पर, 
बचपन की सारी यादों को ताज़ा कर देता है


   परिवार और रिश्तों की डोरी,
 घर खुद में बांधे रखता है 
जन्नत और स्वर्ग को घर, 
             खुद में सजाए रखता है


कुछ ऐसा ही है घर,
 सबको अपनी तरफ खींच लेता है, 
कुछ ऐसा ही होता आशियाना ,
 जो प्यार भरी यादों  को सींच देता है

-HarshV. Sharma

घर एक ऐसा शब्द जिसके साथ हमारी कई यादें जुडी होती हैं हमारा बचपन में खेलना कूदना रोना लड़ना झगड़ना फिर बड़े होकर घर के बाहर निकलना फिर वो सब याद आता है ममता प्यार लोगों का बस हमारे बचपन तक ही सीमित होता है उसके बाद वही प्यार एक मतलब के लिए हो जाता है ये कविता भी इसी दृश्य की ध्यान में रख कर बनाई गयी है अगर आपको पसंद आई तो कृप्या शेयर लाइक और अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरुर दे

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