रोज़ अपनों के बीच खोकर,
गैरों के बीच खुद को ढूंढना,
क्या यही है मेरी पहचान
हर दिन नया लेख लिखकर,
लोगों की आँखों में बस जाता हूँ,
फिर अगले दिन उन लेखों की परत हटाते हुए,
खुद को ढूंढ़ने लग जाता हूँ,
क्या यही है मेरी पहचान
हर रोज़ सुबह उठता हूँ,
मन मे नयी चाह लिए,
पर जिंदगी की भागदौड़ में,
खुद को भूल जाता हूँ हज़ारों भटकी राहें लिए
रास्तों से पूछा,राहिंओं से पूछा
खोजता रहा मै अपनी पहचान,
न जाने मैंने कितने तारों से पूछा
Sahi he bhai
ReplyDeleteThanks
Deleteये सोचकर वो खिड़की से झाक ले शायद
ReplyDeleteउसके गली में मैंने बेवजह झगड़ा कर लिया
हम तो इसी में रह गये..
लाजवाब...
ये सोचकर वो खिड़की से झाक ले शायद
ReplyDeleteउसके गली में मैंने बेवजह झगड़ा कर लिया
हम तो इसी में रह गये..
लाजवाब...
Nice one.My good blessing with you.
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