Sunday 8 October 2017

मेरी पहचान

 पहचान


क्या है मेरी पहचान,
रोज़ अपनों के बीच खोकर,
गैरों के बीच खुद को ढूंढना,
क्या यही है मेरी पहचान

हर दिन नया लेख लिखकर,
लोगों की आँखों में बस जाता हूँ,
फिर अगले दिन उन लेखों की परत हटाते हुए,
खुद को ढूंढ़ने लग जाता हूँ,
क्या यही है मेरी पहचान

हर रोज़ सुबह उठता हूँ,
मन मे नयी चाह लिए,
पर जिंदगी की भागदौड़ में,
खुद को भूल जाता हूँ हज़ारों भटकी राहें लिए

रास्तों से पूछा,राहिंओं से पूछा
खोजता रहा मै अपनी पहचान,
न जाने मैंने कितने तारों से पूछा

खो गया था मै अपनी पहचान,
कहीं किसी अँधेरे में,
मुश्किल था ढूंढ लाना उसे 
इस संसार मे

मुझे भी अपनी एक नयी पहचान बनानी है,
रोज़ नए लेख लिखकर उस पर,
नयी परत चढानी है
                                                            - Harsh V. Sharma


5 comments:

  1. ये सोचकर वो खिड़की से झाक ले शायद
    उसके गली में मैंने बेवजह झगड़ा कर लिया

    हम तो इसी में रह गये..

    लाजवाब...

    ReplyDelete
  2. ये सोचकर वो खिड़की से झाक ले शायद
    उसके गली में मैंने बेवजह झगड़ा कर लिया

    हम तो इसी में रह गये..

    लाजवाब...

    ReplyDelete
  3. Nice one.My good blessing with you.

    ReplyDelete

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