देश
एक व्यंग्य छिड़ गया है आज,
देश पर गिरने लगी है गाज,
कभी स्वर्ण सहित नामों से सजा देश,
आज खुद ढूंढ रहा है अपना वेश,
भोली-भोली सी जनता पर,
सबने किया राज यहाँ पर,
पहले राजा फिर अंग्रेज,
फिर कुछ अपने ही रँगरेज,
हंसती-खेलती इस मातृभूमि को,
सबने बना दिया निशाना,
सत्य निष्ठा और संस्कृति को,
सबने शुरू कर दिया गिरना
पहले अहिंसा और एकता से,
देश के कदम बढ़ते थे,
अब हिंसा की ही चादर ओड़कर
जनता के कदम बढ़ते हैं
सत्ता-सत्ता के नारे लगाकर
आज नेताओं का बड़बोला है,
जनता को गुमराह कर
कुर्सी पर सबका मन डोला है
-हर्षवर्धन शर्मा
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