Saturday, 24 November 2018

कभी-कभी

कभी-कभी

बारिश में रख दूँ तुझे ज़िन्दगी, 

ताकि धुल जाए तेरी सारी स्याही भी,

 क्यूंकि अब थक हार के तुझसे ऐ ज़िन्दगी!
 दुबारा लिखने का मन करता है कभी-कभी

भूलना चाहता हूँ अब मैं,
जितना जिया तुझे मैं,
क्यूंकि अब यादों का बोझ ,
संभाला नही जाता कभी-कभी

भर-भर के जी लिए हैं सारे दुःख,
अब थोड़ा सा जरूरी है बदलाव भी,
कब तक जीते रहेंगे गम के पहाड़ तले,
सुख का सुकून भी तो चाहिए कभी-कभी

बेवजह धड़कते-धड़कते अब,
बेचैन सा हो गया है ये दिल भी,
थक चूका है खुद से अब बस ,
नयी धड़कने भी तो चाहिए कभी-कभी

बहुत जी लिया मैं बड़ा बनकर,
अब खुद को बदलना जरूरी है,
 वो बचपना दुबारा मिल जाता तो ,
अभी भी माँ की गोद में खेलने का मन करता है कभी-कभी


-"हर्षवर्धन शर्मा"



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