बदलता जहाँ
कितना बदल गया है जहाँ
जहाँ देखो अत्याचार बढ़ रहे हैं वहां
वो सच होने लगी है कहावत
इंसान इंसान की होगी एक दिन बगावत
खून के सब प्यासे हो गए
लड़ने को सब आतुर हो गए
कहाँ गयी वो एकता जिसके नारे लगे थे
क्या सोचेंगे वो लोग जो आज़ाद करके गए थे
मासूमों की जानें जाती हैं
लोग नामों में धर्म ढूंढ लेते हैं
टुकड़ों मे बट जाना बस यही इंसान की परिभाषा है
बिना दया करुणा के जीना बस यही तो मनुष्य की अभिलाषा है
-Harsh Sharma

Good brother...
ReplyDeleteKeep it continue.
Are waaa
ReplyDeleteAre waaa
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