Friday 24 November 2017

 बदलता जहाँ

 बदलता जहाँ



कितना बदल गया है जहाँ

 जहाँ देखो अत्याचार बढ़ रहे हैं वहां 


वो सच होने लगी है कहावत

 इंसान इंसान की होगी एक दिन बगावत 


खून के सब प्यासे हो गए

 लड़ने को सब आतुर हो गए 


कहाँ गयी वो एकता जिसके नारे लगे थे 

क्या सोचेंगे वो लोग जो आज़ाद करके गए थे 


मासूमों की जानें जाती हैं

 लोग नामों में धर्म ढूंढ लेते हैं 


टुकड़ों मे बट जाना बस यही इंसान की परिभाषा है 

बिना दया करुणा के जीना बस यही तो मनुष्य की अभिलाषा है


                   -Harsh Sharma

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